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कंगूवा फिल्म रिव्यु - टैलेंट, पैसे और समय की बर्बादी



यदि आप पैसे, समय और इमोशंस की बर्बादी नहीं चाहते तो इस चिल्ड्रेन्स-डे पर टिकट्स के पैसे से अपने बच्चे के लिए कुछ खरीद लेना. बाकी आपकी मर्जी!

Posted On:Friday, November 15, 2024

निर्देशक - शिवा
कलाकार - सूर्या, बॉबी देओल, दिशा पटानी, योगी बाबू, आनंदराज, कोवई सरला, रेडिन किंग्सले, नटराजन सुब्रमण्यम
अवधि - 2 घंटे 34 मिनट
 
2024 ने जहाँ लोग वीएफएक्स को लेकर बेहतरीन कहानी बना रहे हैं वही कंगूवा के मेकर पुनर्जन्म के फॉर्मूला पर अटक गए हैं. इस तरह की फिल्मके लिए एक अदद होशियार दिमाग निर्देशक की सख्त जरूरत होती हैं, और शानदार एक्टर्स की, लेकिन कंगूवा में सिर्फ पीआर प्रमोशन के अलावाकुछ नहीं हैं. ना तो कोई कहानी हैं, ना कोई सर-पैर हैं, और ना ही फिल्म में वाले काम करने वाले एक्टर्स कुछ कर पाते हैं, सिर्फ वीएफएक्स शानदारहैं, लेकिन कहानी इतनी कमजोर हैं की कही कुछ काम नहीं करता.
 
पुनर्जन्म की कहानियों में जो रस सुभाष घई ने फिल्म ‘कर्ज’ में, फराह खान ने ‘ओम शांति ओ में और अनीस बज्मी ने ताजा ताजा ‘भूल भुलैया 3’ मेंघोला है, वैसा कुछ फिल्म ‘कंगुवा’ में नहीं है। तमिल सिनेमा में बड़ा नाम रहा है सूर्या लेकिन फिल्म ‘कंगुवा’ में उनके नाम पूरा डुबो दिया हैं. वही बॉबीदेओल, एक लम्बे समय के बाद एनिमल से सुर्खियों में आये थे, लेकिन लगता हैं अब जल्द ही वापस गायब होने वाले हैं. दिशा पाटनी भी फिल्म हैं,काश नहीं होती!
 
‘कंगुवा पहली बार जब कोरोना संक्रमण काल से ठीक पहले 2019 में घोषित हुई थी तो उस पर आंशिक ग्रहण लगा और ये तब बंद हो गई थी।लेकिन दो साल पहले फिल्म पुनर्जीवित हो उठी और, अब सिनेमाघरों में है। कहानी हजार साल के अंतराल में फैली है। राइटर-डायरेक्ट जहाँ कही भीकुछ अच्छा लगा, उन्होंने फिल्म में डाल दिया, शायद यही फिल्म की दिशा गलत हो गई! हजार साल पहले फिरंगी कुछ द्वीपों पर कब्जा करने आते हैं, और कब्जा शुरू करने से पहले इन द्वीपों को आपस में लड़ा लेते हैं। एक द्वीप के राजा का बेटा है कंगुवा। फिल्म शुरू होने के कोई आधा घंटे बादपरदे पर दिखता है, उसका मुकाबला परिस्थितियोंवश एक ऐसे द्वीप के राजा उधिरन से होना है जहां अंतिम संस्कार के समय पूरा शरीर कौओं को सौंपदेने की परंपरा है। उधिरन के बेटे इस युद्ध में मारे जाते हैं। उसका एक बेटा और भी है जिसके बारे में ज्यादा किसी को पता नहीं। इसे निर्देशक शिवा नेफिल्म के सरप्राइज के तौर पर रखा है सो ज्यादा इस पर लिखना ठीक भी नहीं।
 
जंगलों में रहने वाले मनुष्यों की इस कहानी में दो चीजें जबरदस्ती डाली गई हैं, एक तो हिंसा और दूसरा म्यूजिक के नाम पर कानफोड़ू शोर। अब चूंकिकहानी उस दौर की है जहां रक्तपिपासुओं का भी राज हुआ करता था तो फिल्म ‘एनिमल’ के एक्शन डायरेक्टर सुप्रीम सुंदर ने जम-कर खून-खराबाफिल्म में ठूंसा हैं. वही फिल्म ‘कंगुवा के निर्देशक शिवा कई बार लगता है कि सुप्रीम सुंदर को काम पर लगाकर खुद थाइलैंड की सैर करने चले गएऔर दो चार सीन भी वहां से शूट कर लगाए।
 
और वही फिल्म की कहानी में एक नया एंगल आता हैं, फिल्म बताती है कि साल 2024 में देश में पुलिस की हालत खस्ता है। पुलिस कमिश्नर तकअपराधियों को अपने मातहतों से पकड़वाने की बजाय भाड़े के अपराधियों को इसकी सुपारी दे रहे हैं। फिल्म के शुरू में सूर्य ऐसे ही एक भाड़े केअपराधी के किरदार में है जिसकी मुलाकात एक घटना के दौरान एक ऐसे किशोर से हो जाती है, जो उसे उसका पिछला जन्म याद दिलाता रहता है।
 
इस फिल्म की कहानी में इतने ट्विस्ट और टर्न हैं, की आप हार मान कर अपनी कुर्सी की बैठे रहते हैं की कब फिल्म ख़तम हो, और कब घर जाये!
 
अभिनेता के तौर पर सूर्या की एक्टिंग तारीफ के काबिल हैं, लेकिन कहानी के कमजोर होने के कारण वो इस फिल्म को नहीं बचा पाते, और अपनेनिर्देशक शिवा के साथ मिलकर अपनी सारी इज्जत मिट्टी में मिला देते हैं. फिल्म खत्म होते होते याद भी नहीं रहता कि अरे, इस फिल्म की हीरोइनदिशा पाटनी हैं। फिल्म की लंबाई और दिशा के रोल का समय गिना जाए तो उनसे ज्यादा परदे पर योगी बाबू नजर आते हैं।
 
सिनेमैटोग्राफर से लेखक और लेखक से निर्देशक बने शिवा के लिए ये फिल्म शुरू से चुनौती रही है। वह एक के बाद एक हिट फिल्में देने के लिएतमिल और तेलुगु दोनों भाषाओं के सिनेमा में खासी दखल रहते हैं, लेकिन ‘कंगुवा’ उनके लिए बड़ा झटका साबित होने जा रही है। सूर्य के प्रशंसकोंको ये फिल्म शायद ही पसंद आए और हिंदी बेल्ट में जो लोग इसे लॉर्ड बॉबी देओल के लिए देखने जाएंगे, वे अपने इस फैसले पर पछताते ही नजरआएंगे।
 
फिल्म का संगीत देवी श्री प्रसाद ने दिया है। लेकिन, फिल्म के एक भी गाने की धुन कर्णप्रिय नहीं है। बैकग्राउंड म्यूजिक के बारे में मैंने पहले ही बता दिया। रही बात एडिटिंग यानी संपादन की तो उसकी गलती के चलते फिल्म काफी लंबी हो गई है। इंटरवल के पहले ही दर्शक थक जाता है, कुछफिल्म की लंबाई के चलते, कुछ फिल्म के उबाऊ होने के चलते। यदि आप पैसे, समय और इमोशंस की बर्बादी नहीं चाहते तो इस चिल्ड्रेन्स-डे  परटिकट्स के पैसे से अपने बच्चे के लिए कुछ खरीद लेना. बाकी आपकी मर्जी!


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