लोकआस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा का आज, 27 अक्टूबर को तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण दिन है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर भक्तजन नदी, तालाब या घाट पर एकत्र होकर अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्यदेव को 'संध्या अर्घ्य' अर्पित करेंगे। यह पर्व भगवान सूर्यदेव और छठी मैया की उपासना को समर्पित है, जो 'नहाय-खाय' और 'खरना' के बाद आज 'संध्या अर्घ्य' की रस्म के साथ अपने चरम पर पहुंच रहा है। इस दिन के अर्घ्य के साथ, व्रती अपने 36 घंटे के निर्जला व्रत के सबसे कठिन चरण को पूरा करते हैं, जिसका समापन अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा।
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का गहरा महत्व
छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देना मात्र एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि कृतज्ञता, संतुलन और धैर्य का प्रतीक है। इस पूजा में सूर्य देव और उनकी पत्नी प्रत्युषा (संध्या) की आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, डूबते सूर्य को अर्घ्य देना इस बात का प्रतीक है कि हमें जीवन के हर चरण—चाहे वह उदय हो या अस्त—का सम्मान करना चाहिए। यह मनुष्य को जीवन के उतार-चढ़ाव में धैर्य और शांति बनाए रखने की प्रेरणा देता है। शाम के समय सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्युषा के साथ होते हैं, और उन्हें अर्घ्य अर्पित करना यह दर्शाता है कि श्रद्धा केवल सफलता या प्रकाश के समय ही नहीं, बल्कि कठिन क्षणों (अंधकार की ओर प्रस्थान) में भी अटल रहनी चाहिए। यह परंपरा समाज में शांति, एकता और अटूट आस्था का सुंदर प्रतीक है।
संध्या अर्घ्य की विधि और तैयारी
छठ महापर्व के तीसरे दिन की संध्या में अर्घ्य देने की विधि अत्यंत पवित्र और अनुशासित होती है। इस दिन व्रत रखने वाले (व्रती) नए और स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं।
जल में खड़े होकर अर्घ्य: व्रती पवित्र नदी, तालाब या घर के आस-पास बनाए गए घाट पर कमर तक जल में खड़े होते हैं।
प्रसाद और सूप सज्जा: इस अवसर के लिए विशेष रूप से बांस की टोकरियों और सूप में प्रसाद सजाया जाता है। इसमें ठेकुआ, चावल के लड्डू, गन्ना, केला, संतरा, नारियल और विभिन्न मौसमी फल शामिल होते हैं, जिन्हें सूर्यदेव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है।
अर्घ्य अर्पित करना: सूर्य को जल अर्पित करते समय, व्रती दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाकर जलधारा प्रवाहित करते हैं। यह ध्यान रखा जाता है कि अर्घ्य का जल पैरों पर न गिरे। अर्घ्य के जल में रोली, चंदन या लाल फूल मिलाना शुभ माना जाता है।
सूर्यदेव को समर्पित मंत्रों का जाप
संध्या अर्घ्य देते समय श्रद्धा और भक्ति के साथ सूर्यदेव के मंत्रों का जाप करना अत्यंत मंगलकारी माना जाता है। व्रती निम्नलिखित में से किसी भी मंत्र या सभी मंत्रों का उच्चारण कर सकते हैं:
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
ॐ घृणि सूर्याय नमः (यह सर्वाधिक प्रचलित और प्रभावशाली मंत्र है)
ॐ आदित्याय नमः
ॐ भास्कराय नमः
ॐ दिवाकराय नमः
इन मंत्रों का जाप करते हुए अर्घ्य अर्पण करने से मन को शांति मिलती है और आत्मा में दिव्य ऊर्जा का संचार होता है।
संध्या अर्घ्य पूजा का लाभ
मान्यता है कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से भक्त को उत्तम स्वास्थ्य, जीवन में समृद्धि और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। यह पूजा सभी पापों का नाश करती है और व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। इस दौरान भक्त अपनी संतान की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं, जिससे यह पर्व पारिवारिक कल्याण और लोक कल्याण का प्रतीक बन जाता है।