पश्चिम बंगाल में नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुवेंदु अधिकारी के एक विवादित बयान पर तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने कड़ा पलटवार किया है। तृणमूल कांग्रेस ने कहा है कि सुवेंदु अधिकारी का यह बयान सीधे तौर पर सांप्रदायिक भेदभाव को बढ़ावा देने वाला है और लोगों के बीच गलतफहमी फैलाने की कोशिश है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि अधिकारी ने जान-बूझकर ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया है, जिससे समाज में धार्मिक आधार पर दूरी और तनाव पैदा हो।
विवाद का केंद्र: जम्मू-कश्मीर टूरिज्म को लेकर बयान
यह विवाद उस वक्त शुरू हुआ, जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से मुलाकात की। मुलाकात के बाद ममता ने प्रदेशवासियों से अपील की थी कि वे जम्मू-कश्मीर की यात्रा करें ताकि वहां के पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा मिल सके। खासकर तब, जब 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने जम्मू-कश्मीर के पर्यटन पर बड़ा असर डाला है। इस हमले में 26 लोगों की जान गई थी, जिससे कई पर्यटक वहां जाना कम कर चुके हैं।
सुवेंदु अधिकारी का विवादित बयान
इस मुलाकात के बाद, सुवेंदु अधिकारी ने एक ऐसा बयान दिया जिसने राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल के लोग मुस्लिम बहुल इलाकों में न जाएं। उन्होंने साफ कहा कि अगर लोग घूमने का मन बना रहे हैं तो उन्हें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू जैसे इलाकों का चुनाव करना चाहिए, जहां उन्हें अपनी जान के लिए खतरा नहीं होगा। अधिकारी ने कहा कि कश्मीर में धार्मिक पहचान पूछ-ताछ कर जान लेने की घटनाएं होती हैं, इसलिए सुरक्षा के लिहाज से बेहतर है कि लोग वहां जाने से बचें।
तृणमूल कांग्रेस का जवाब: सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ
तृणमूल कांग्रेस ने इस बयान को धर्म आधारित भेदभाव फैलाने वाला बताते हुए आलोचना की। पार्टी के ऑफिशियल X (पूर्व ट्विटर) हैंडल पर जारी बयान में कहा गया कि ममता बनर्जी की कोशिश थी कि जम्मू-कश्मीर के पर्यटन को पुनर्जीवित किया जाए, जबकि सुवेंदु अधिकारी की यह टिप्पणी आतंकवादियों की मंशा को पूरा करने वाली है। तृणमूल कांग्रेस ने स्पष्ट किया कि अधिकारी का बयान आतंकियों को वही मौका दे रहा है जो वे चाहते हैं, यानी कि लोगों में भय और विभाजन पैदा करना।
पार्टी ने कहा कि भाजपा और उसके नेता देश के संविधान से 'धर्म निरपेक्षता' के सिद्धांत को हटाना चाहते हैं। यह देश एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जहां सभी धर्मों और समुदायों को समान अधिकार प्राप्त हैं। ऐसे सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण बयानों की यहाँ कोई जगह नहीं है। तृणमूल ने यह भी कहा कि वे कश्मीर, बंगाल या देश के किसी भी हिस्से में भाजपा को सांप्रदायिक भेदभाव फैलाने नहीं देंगे।
राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य
यह विवाद पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले उभर कर आया है, जहां राजनीतिक दल अपनी अपनी रणनीतियों को मज़बूत करने में लगे हुए हैं। सांप्रदायिक तनाव और धार्मिक भावनाएं अक्सर चुनावी राजनीति का हिस्सा बन जाती हैं। ऐसे में तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि भाजपा इस मुद्दे को विभाजनकारी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है।
सुवेंदु अधिकारी का बयान न केवल सामाजिक सद्भाव और मेलजोल को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि इससे प्रदेश और देश में धार्मिक आधार पर असहिष्णुता और कटुता भी बढ़ सकती है। कई राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि ऐसे बयानों से न केवल लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़ती है, बल्कि देश की एकता भी प्रभावित होती है।
क्या कहती है राजनीतिक दुनिया?
-
सुवेंदु अधिकारी का दावा है कि उनका बयान सतर्कता और सुरक्षा की दृष्टि से दिया गया है। वे कहते हैं कि यह एक यथार्थवादी सुझाव है कि लोग अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क रहें, खासतौर से ऐसे इलाके जहां आतंकवादी गतिविधियां हो रही हैं।
-
दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस इसे धर्म के नाम पर विभाजनकारी राजनीति करार देती है। वे इसे समाज में डर और असहिष्णुता फैलाने वाला कदम मानती है।
निष्कर्ष
पश्चिम बंगाल में सुवेंदु अधिकारी के बयान और तृणमूल कांग्रेस की प्रतिक्रिया ने एक बार फिर सांप्रदायिकता, सुरक्षा और राजनीति के बीच के जटिल रिश्तों को सामने ला दिया है। जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जम्मू-कश्मीर के पर्यटन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही हैं, वहीं विपक्षी नेता का ऐसा बयान विवाद का कारण बन गया है।
यह मामला देश की धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक सद्भाव और राजनीतिक संवाद की सीमाओं पर सवाल खड़ा करता है। आने वाले समय में यह देखना होगा कि राजनीति और समाज इस तरह के बयानों से कैसे निपटते हैं और क्या वे एकता और सहिष्णुता के मार्ग पर आगे बढ़ पाएंगे।